Saturday, February 25, 2012

                                                                धूप 

चुपके से दाखिल होती है धूप 
खिरकी के रास्ते आती है  धूप ,

नींद की चादर   कुतर  जाती है धूप 
बाल खोले जब आती है धूप ,

तितलियों पर सवार आती  है धूप 
दरख्तों   के   बीच    खेलती है धूप ,

पत्तियों से बाते करती है धूप
यादों को सुखाती है धूप ,

कभी सपनो में कुलबुलाती है धूप
कभी सपनो को सहलाती है धूप ,

जब से रूठ गए हो तुम 
उदास सी  है धूप ,

कभी आ भी जावो चुपके से 
माथे पर धूप की बिंदी लगाकर 
चुपके से दाखिल होती है जैसे धूप .




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