Saturday, February 25, 2012

                                                                धूप 

चुपके से दाखिल होती है धूप 
खिरकी के रास्ते आती है  धूप ,

नींद की चादर   कुतर  जाती है धूप 
बाल खोले जब आती है धूप ,

तितलियों पर सवार आती  है धूप 
दरख्तों   के   बीच    खेलती है धूप ,

पत्तियों से बाते करती है धूप
यादों को सुखाती है धूप ,

कभी सपनो में कुलबुलाती है धूप
कभी सपनो को सहलाती है धूप ,

जब से रूठ गए हो तुम 
उदास सी  है धूप ,

कभी आ भी जावो चुपके से 
माथे पर धूप की बिंदी लगाकर 
चुपके से दाखिल होती है जैसे धूप .




                                                   बंदिश


आने दो मुझे जरा बंदिशों से बाहर 
बात करने को जी चाहता  है .

कभी खयालो से नहीं हुआ जो बाहर 
आज पाने को जी चाहता  है .

जो कभी न हो सका खयालो से दूर 
आज उसे गुनगुनाने को  जी चाहता  है .

जो कभी न हो सका मुझसे बाहर 
उसे ही पाने को जी चाहता  है .


आने दो मुझे जरा बंदिशों से बाहर 
बात करने को जी चाहता  है .




Thursday, February 9, 2012

             एक प्याली चाय 






कभी - कभी मुझे लगता है की जिन्दगी 
एक चाय की प्याली है.
रोज सवेरे  सूरज की अंगीठी पर 
गर्म होती है .
हर शाम सितारों की ठंडक से 
मर जाती है .
कभी - कभी भाप बनकर बिखरती है 
जिन्दगी 
जिन्दगी और चाय  क्या पूरक  है ,
क्या जिन्दगी भी चाय  की तरह पी 
जा  सकती है ,
शायद ,
तभी रोज सवेरे गर्म होती है,
यह जिन्दगी की 
प्याली .
                                दोस्ती का अर्थशात्र


एक खूबसूरत लब्ज़ 
दोस्ती

कभी ,

सागर से गहरी यह 
दोस्ती

कभी ,

ज्वार-भाटे सी उनफ़ती यह
दोस्ती

कभी,

बंद कुएं सी
खुद में सिमटी यह 
दोस्ती 

कभी,

सूरज की पहली किरण  सी
खिलती यह 
दोस्ती

कभी,

शाम दूर क्षितिज पर घुलती 
यह 
दोस्ती

कभी,

हर रात ओस सी पिघलती 
यह 
दोस्ती .