Thursday, February 9, 2012

             एक प्याली चाय 






कभी - कभी मुझे लगता है की जिन्दगी 
एक चाय की प्याली है.
रोज सवेरे  सूरज की अंगीठी पर 
गर्म होती है .
हर शाम सितारों की ठंडक से 
मर जाती है .
कभी - कभी भाप बनकर बिखरती है 
जिन्दगी 
जिन्दगी और चाय  क्या पूरक  है ,
क्या जिन्दगी भी चाय  की तरह पी 
जा  सकती है ,
शायद ,
तभी रोज सवेरे गर्म होती है,
यह जिन्दगी की 
प्याली .

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